कामवाली
लॉक डाउन के पहले जब काम वाली कहती थी ,
दीदी मै कल नहीं आऊंगी,
यह सुनते ही लगता था मानो बड़ी मुसीबत छाई थी।
करना होगा सारा काम, निरंतर बिना कोई विराम,
झाडू- पोंछा,खाना- पीना ,सब करना होगा बिना विश्राम।
करने से ज्यादा यह विचारो का बोझ था,
कुछ करने की आदत नहीं थी, इस का सारा क्रोध था।
घंटों गेट पर फोन कर के कोई काम वाली को हमसब थे ढूढते,
इंतज़ार करते उस कामवाली का और राह भी हम ताकते।
दूसरी काम वाली थी कहती, दीदी मैं डेढ़ बजे आऊंगी,
तुम चिंता मत करो, तुम्हारे घर कर सारा काम कर जाऊंगी।
सुन कर के बस इतना ,
मिल जाता था सुकून कितना।
अब तो कम वाली आएगी,
घर का सारा काम कर जाएगी।
घड़ी पर मेरी टकटकी लगी थी,
इतने में घंटी बजी और कामवाली बाहर ही खड़ी थी।
मैंने उसको अंदर बुलाया,
बड़े प्यार से काम भी समझाया।
कामवाली बोली दीदी सब हो जाएगा,
जब मेरा जेब गरमाएगा।
लूंगी मैं रेट से डबल पैसे,
काम सारे तुम्हारे, फटाफट हो जाएंगे ऐसे।
मन ही मन मैंने कहा ,रेट से मुझे नहीं है परहेज,
पर यह कामवाली लगती है मुझे बहुत ही तेज़।
आपनी सावधानी के लिए मैंने मांगा उसका आधार,
बोली वह पूछ लो अस्सी नंबर वालो से मेरा व्यवहार।
मैंने कहा आधार नहीं, तो काम नहीं करवाऊंगी,
बहस किया तो कोतवाली भी ले जाऊंगी।
इस बात पर वह भड़क गई,
कुकर मांज रही थी वह, कुकर भी पटक गई।
अब तो दोपहर के दो बज गए थे,
काम अभी भी सारे यू ही पड़े थे।
छोड़ काम वाली का यह चक्कर,
काम किया फटा फट मैंने डटकर।
फिर कुछ दिनों बाद ही लॉक डाउन हो गया,
और यह कामवालियों का चक्कर कहीं खो गया।