मुखौटा
जिंदगी जिंदादिली का नाम है ,पर जिंदगी जीने के चक्कर में हम सब अपने अस्तित्व को भूल जीवन के चक्र मैं ऐसे मशरूफ हो जाते हैं की जिंदगी हरपल रेत की तरह हमारी मुट्ठी से फिसलती चली जाती हैं । जिंदगी सादगी से जीने के चक्कर में हम सब समय-समय पर भिन्न भिन्न प्रकार के मुखोटे लगाते हैं, हमारा असली चेहरा हमारे किसी काम का नहीं ।अलग-अलग परिस्थितियों में हम सब अलग-अलग मुखौटा लगाते हैं ।हमारा एक चेहरा बाहरी दुनिया के लिए होता है जिस पर हम आवश्यकता अनुसार मुखौटा बदलते चले जाते हैं ,और एक चेहरा असल होता है जो इस मुखोटे के अंदर छुपा होता है । एक जोकर भी मुखौटा लगता है फर्क सिर्फ इतना ही है कि उसका मुखौटा उसके किरदार के अनुसार होता है, जो वह सब को हंसाने के लिए लगाता है और वह सब लोगों को दिखाई देता है ।पर हमारा मुखौटा किसी को भी नहीं दिखता , कहने को लोग सीरत की बात करते हैं पर मरते हमेशा सूरत पर ही हैं।जो असल में एक भारी मेकअप के मुखोटे के पीछे छुपा होता है ,समय की मांग कहो या विडंबना बाहरी दुनिया के लोगों को इन अच्छे-अच्छे मुखौटों का उपयोग करना बखूबी आता है । साहब यह दुनिया है और यहां स्वार्थ का कारोबार दिन दुगनी और रात चौगुनी परवान चढ़ता है । किसी भी अच्छे इंसान को तब तक खींचा जाता है जब तक वह टूट कर बिखर ना जाए। दुनिया के सामने देव का मुखौटा पहने लोग अपने ही घर में दानव हो जाते हैं । बस लोक लज्जा के कारण हर कोई मुखौटा लगा लगा अपना अच्छा वाला रूप हीं दुनिया को पेश करते हैं। पर सच्चाई हकीकत से कोसों दूर खड़ी सहमई सिसकियां भर रही होती है ।ऐसी दिखावटी मुखोटे वाली जिंदगी में हम सब जीते हैं। पर सच्चाई अंदर बैठे सिसकियां लेती दम तोड़ रही होती है । मुखौटा ही अच्छा है इस दौर में जब तक पहना है तब तक सब ठीक है ,जहां उतार कर अपना असली चेहरा दिखाया वहां लोग बुरा मान जाते हैं। कहीं धर्म का मुखौटा है और हो रहा है पाप ,कहीं दोस्ती का मुखौटा है और हो रहा विश्वासघात कहीं सामाजिक मुखौटा है ओर खाता है प्रशंसा की खुराक,पर कर देता है यह मुखौटा सब कुछ जलाकर खाक, अपने हो जाते हैं खिलाफ रह जाती है झूठे प्रशंसकों की कतार। चलो उतार के हम सब फेंक दे या झूठा मुखौटा और हटा दें यह नकाब और पहन ले स्वच्छ मन का एक सुंदर सा लिबास। इंसान है हम सब ,आइए बस फैलाए प्यार और इंसानियत का पैगाम ।