सीता -सीता सब करे बन ना सके कोई,एक बार ध्यान करे उर्मिला का तो जाने त्याग का होए।
सदा से सीता जी की गाथा हम सब सुनते आए है।उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था । एक राजा कि पुत्री एवं एक राजा की धर्म पत्नी होने के बावजूद जीवन में आपदाओं की कोई कमी नहीं थी। जब श्री राम को वन वास मिला तो एक पत्नी के धर्म का पालन करते हुए वो अपने स्वामी के साथ वन वास चल पड़ी। उनका यह आचरण उनके पत्नी धर्म की निष्ठा की दर्शाता है।
जब लक्ष्मण को ज्ञात हुआ कि भैया श्री राम और सीता मैया सारी राजसी ठाठ बाट का त्याग कर वन का रुख कर रहे है तो बिना सकुचाए वह भी वन वास का कष्ट हंसते हंसते झेलने के लिए तैयार हो गए।
सीता जी ,रामजी एवं लक्ष्मण वनवास को चल दिए। सीता के कष्टों का वर्णन जितना किए जाए वो कम है ,एक नरेश कि पुत्री को कितने संघर्षों का सामना करना पड़ा होगा । एक स्त्री जो एक़ रानी थी, जिसकी दासियां सेवा किया करती थी , वह स्वयं दासी सा जीवन बिताने जा रही थी । इस कष्ट का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते क्या बीती हुई होगी उनके दिल पे।पर कहा जाता है ना जब हमसफ़र साथ हो तो सारी रहे आसान लगती हैं। क्या सिर्फ श्री राम का साथ ही काफी था उन कष्टों को झेलने के लिए । जरूर ऐसा ही रहा होगा। सीता को रावण छल के ले उड़ा। एक पर पुरुष द्वारा सीता को हर लिया गया। श्री राम को कितनी व्याकुलता हुई होगी इसका अंदाजा हम चाह कर भी नहीं लगा सकते। सीता जी पर जब रावण की नजरे पड़ती होगी तब बिजली सी गिर जाती होगी। उनके मानसिक कष्ट को आंकना हम सब के बस की बात नहीं। 14 वर्षों मैं 13 वर्षों से जादा अपने स्वामी के संघ हंसते खेलते बीत गए पर वह कुछ महीने जो सीता जी ने आपने पति से दूर बंदी बन के रावण की लंका में गुजारी ।वह समय काटे ना कटता होगा, इसकी कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती है।
एक स्त्री के लिए पति ही उसका सब कुछ होता है। वह आपने पति मे आपनी सारी दुनिया समेटे रखती है।
दुख हो या सुख, एक दूसरे के साथ जीवन कट ही जाता है। अर्थात् एक पत्नी के लिए उसका पति ही उसका मित्र,सखी और सबसे बड़ा राज़दार होता है । एक पत्नी आपने सुख- दुख सब आपने पति से बांटती है । अब ऐसे में सीता मैया का दुख ,और कष्ट तो हम सब ने देखा सुना और पढ़ा है। परन्तु लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला के त्याग और बलिदान को हमें नहीं भूलना चाहिए।
१४वर्षों का समय कम नहीं होता। ऐसे में एक एक दिन पहाड़ सा बिता होगा । वह विरह की अग्नि में जली होंगी। एक पति रूपी मित्र ,सखा एवं राज़दार के हक से लंबे समय तक वंचित रही होंगी। ।। क्या यह बात सोचने वाली नहीं है।।यह तों अच्छा है कि कथा के वर्णन अनुसार , लक्ष्मण ने निद्रा देवी से विनती की थी कि वो अगले 14 वर्षों के लिए नहीं सो सकते थे कयोंकी वह आपने बड़े भइया और भाभी की रक्षा करना चाहते थे। इस प्रकार उर्मिला रात और दिन सोती रही 14 वर्ष के लिए और लक्ष्मण तन - मन से राम जी और सीता जी की सेवा करते रहे।
यह तो लक्ष्मणजी की विनती के कारण उर्मिला को उन कष्टों को नहीं सहन करना पड़ा नहीं तो उनका त्याग इतिहास के सबसे बड़े त्याग
में शामिल होता और स्वर्ण अक्षरों में आंकित होता।