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आदत

Updated: Jul 1, 2021

शाम का समय था, और इस लॉक डाउन के दौरान सारा काम निपटा, कुछ शांत पलो के खोज में ऋतु आपने हांथ में चाय की प्याली ले कर अपने बालकनी में बैठी ही थी की उसके लैंडलाइन फोन की बेल बजी,चाय को सामने रखे टेबल पे रखते हुए वह भागी और फोन रिसीव किया।

कैसे है तू?

कहां है?

ना कोई फोन ना मैसेज !

सब ठीक तो है?

कितने दिन हो गए यार ,

तुझे मैं याद नही आती क्या ?

एक ही सांस में ऋतु की सहेली गरिमा ने अपनी सारी भड़ास निकाल ली।

ऋतु ने कहा,

मैं ठीक हूं,

बस थोड़ी बिजी हूं,

करोना के डर से और लॉक डाउन के कारण , दाई और नौकरों को कम से निकल दिया है, तो बस काम का बोझ थोड़ा सा बढ़ गया है ।

खैर छोड़ , तू बता क्या हाल है? तू कहां बीजी थी ? इतने दिनो तक कहां गायब थी तू? तूने भी तो अब फोन किया है, इतनी याद आ रही थी तो तू मुझे पहले ही फोन कर लेती।दोनो एक दूसरे की खिंचाई कर रही थी और करे भी क्यों न दोनो बचपन की सहेलियां जो थी। उनका बचपन तो साथ बीता ही था और जवानी के दिनो मे भी दिनो एक कॉलेज में ही थी,बस शादी के बाद ये दोनो अलग हो गई।

बचपन से ले कर के जवानी तक एक ही काम किया था दोनो ने , एक दूसरे की खिंचाई।


ऋतु की शादी दिल्ली के रहने वाले रोहन से हुई थी जो की एक बड़े मल्टीनेशनल फर्म में काम करता था और गरिमा झारखंड में स्थित धनबाद की रहनेवाली थी। शहर छोटा था पर सारे सुख सुविधाओं से लैस था । उसकी शादी धनबाद के ही रहने वाले रमेश से हुई थी जो की वहा का एक बड़ा कोयला कारोबारी था।

बात को आगे बढ़ाते हुए गरिमा ने कहा ,सुन ऋतु मैंने ये पूछने के लिए फोन किया था की तुझे गुलर कि सब्जी बनाने आती है क्या?

ऋतु ने कहा ,क्या ! किसकी सब्जी?

अरे गुलर ! गुलर की सब्जी, गरिमा ने थोड़ा जोर देते हुए कहा,ऋतु की हसी छूट गई और वह बोली ,न बहन मुझे भी नही आती ,कैसे बनती है यह सब्जी और माई डियर गरिमा सारी सब्जियों से तेरा जी भर गया क्या? जो ये गुलर की सब्जी तू खाना चाहती है।

गरिमा ने कहा ,अरे ! नही तू तो आपने सास ससुर के साथ रहती है ना तो मैने सोचा की तुझे आती होगी।


ऋतु को यह बात सुनकर बड़ा ही अजीब लगा पर उसने इस बात को नजर अंदाज करते हुए कहा, ठीक है ,में मम्मीजी से पूछ कर तुझे बताऊंगी।

बात को आगे बढ़ाते हुए ऋतु ने गरिमा से कहा ,अच्छा बता इतनी क्या तलब लगी है तुझे इस सब्जी की!

मुझे भी बता क्या खास है इसमें, मैं भी सीखलूंगी, अगर यह इतनी पौष्टिक है।

गरिमा ने कहा , अरे पौष्टिक तो मालूम नही पर मेरे सास और ससुर आ रहे है ,और तुझे तो पता है, वो जहानाबाद के गांव में रहते है और कभी -कभी ही धनबाद आते है। इस बार करोना के कारण काफी दिनो के बाद आ रहे है और रुकने का भी लंबा प्रोग्राम है। उनका खान - पान बिलकुल गांव का है और मुझे तो उनके आने के नाम से ही पसीने छूट रहे है।


ऋतु ने कहा, अरे इसमें क्या घबराना है , सब हो जायेगा ।

देख , मैं तो इतने सालों से अपने सास ससुर के साथ ही रहती हूं,कोई परेशानी नही होगी ,मुझे पता है मेरी सहेली समझदार है और बखूबी मैनेज कर लेगी सब कुछ।


गरिमा ने झुंझलाते हुए कहा,मैनेज माई फूट, मेरे से ना हो पाएगा ये सब मैने यह सब कभी भी नही किया ।

ऋतु ने गरिमा को समझाते हुए कहा, तू टेंशन फालतू ले रही है, हो जायेगा तुझसे, चील कर।


मैं भी तो सब को देखती हूं और मैनेज कर रही हूं, तू भी कर ही लेगी।

गरिमा ने नाराज होते हुए कहा , तुझे समझ नही आ रहा ,मेरे से नही होगा ये सब और जहा तक तुम्हारी बात है, तो तुम्हे तो अब तक आदत हो गई होगी ना इतने सालो मे या आदत हो जाना चाहिए था अब तक।मुझसे नहीं होगा यह सब और आदत ना है ना बनेगी।


ऋतु ने जैसे ही सुना वह पत्थर की तरह हो गई ,उसे समझ नही आया की उसकी सहेली कहना क्या चाहती है?

उसे यह सुन कर धक्का सा लगा । बड़े धीरे स्वर में उसने गरिमा से कहा, सुन मम्मी जी के दवाई का टाइम हो गया है, मैं बाद में तुमसे बात करती हूं, और यह कह कर उसने फोन रख दिया।


गरिमा की बातो से ऋतु आहत थी। बार-बार उसको गरिमा का कहा हुआ "आदत" शब्द गूंज रहा था ।

ऋतु अपनी सहेली की बातो से विचलित हो गई थी। वह बार -बार सोच रही थी , गरिमा ने एक झटके में कह दिया मुझसे नही होगा और जब मेरी बारी आई तो "आदत "बोल कर सरलता से मुझपर सब थोप दिया। मैं एक समझदार लड़की हूं, जो बहु ,बेटी, पत्नी,मां और बहन सब का किरदार खूब निभा रही हूं, और इन सब किरदार को निभाते हुए कभी भी मैने बोझ महसूस नही किया पर आज गरिमा की बातो ने मुझे झकझोर दिया ।

अब ऋतु सोच रही थी,कौन नही चाहता की जीवन बेफिक्र हो कर के जिया जाए ,पर जिम्मेदारियो से ऐसे मोह मोड़ लेना भी तो सही नही।जो जिम्मेदार और समझदार है वह जब सब कुछ करे तो उसे आदत हो जाना चाहीए कह देना कितना आसान है!

क्यों नही सारे लोग यही आदत शुरू से बना लेते है?


खुद तो ढेले भर की जिम्मेदारी से उनके पसीने छूटने लगते है,और जब बात दुसरो की आती है , तब उसको आदत का जामा पहनाने में ऐसे लोग बिल्कुल भी देर भी करते।


अब आप लोग ही बताए , कितनी सही है यह सोच?


गहराई से सोचिएगा और कॉमेंट कर के बताइएगा।









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